मैरकेल का विदेशनीति में मानवाधिकारों पर बल
१५ अप्रैल २००८जर्मन चांसलर अंगेला मैरकेल आज यूरोप परिषद की मेहमान थीं. यूरोपीय संघ से अलग इस संस्था का गठन दस देशों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शांति की स्थापना के लिए किया था. इस बीच इसके सैंतालीस सदस्य हैं और इसका मुख्य काम मानवाधिकारों की रक्षा है.
स्वाभाविक है कि मैरकेल के दौरे पर मानवाधिकारों पर ज़ोर रहा. फ़्रांसीसी शहर श्ट्रासबुर्ग में यूरोप परिषद की संसदीय सभा को संबोधित करते हुए अंगेला मैरकेल ने वैश्वीकरण को मानवीय स्वरूप देने की वक़ालत की. उन्होंने कहा कि इसके लिए ज़रूरी है कि वैदेशिक संबंधों में आर्थिक हितों को मानवाधिकारों पर प्राथमिकता न मिले.
तिब्बत में चीनी कार्रवाई के सिलसिले में जर्मन उद्योग ने कहा था कि यदि ओलम्पिक खेलों का बहिष्कार होता है तो जर्मन आर्थिक हितों को नुकसान पहुँचेगा. चांसलर ने यूरोपीय नागरिकों से लोकतंत्र, क़ानूनी राज्य. स्वतंत्रता, शांति और सहिष्णुता जैसे साझा मूल्यों का समर्थन करने की मांग की और कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा के मामले में यूरोप हस्तक्षेप करने के लिए कर्तव्यबद्ध है.
मैरकेल ने यूरोपीय संघ के सुधारों को सदस्य देशों में शीघ्र अनुमोदन दिए जाने की मांग दुहराते हुए कहा कि इसमें संघ के यूरोपीय मानवाधिकार संधि में शामिल होने का प्रावधान है. जर्मन चांसलर ने रूस से यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के सुधारों में रुकावट न डालने की अपील की. उन्होंने कहा कि नए संसदीय चुनावों के साथ डूमा द्वारा उसके अनुमोदन का समय आ गया है.
रूस यूरोप परिषद का अकेला सदस्य देश है जिसपर मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं. वह वर्षों से यूरोपीय मानवाधिकार कंवेंशन के एक अतिरिक्त प्रोटोकॉल का अनुमोदन नहीं कर रहा है.
इस समय यूरोपीय अदालत में 80 हज़ार मुक़दमे लंबित हैं जिनमें से 20 हज़ार से अधिक मुक़दमे रूस के ख़िलाफ़ दायर हैं.