मुस्लिम महिला की हत्या में उम्रक़ैद की सज़ा
१२ नवम्बर २००९देश विदेश में प्रेक्षकों की नज़रें इस मुकदमे पर टिकी हुई थीं, ख़ास कर मुस्लिम देशों में. भरी अदालत में खुलेआम ऐसी हत्या के बाद मिस्र व अन्य देशों में जर्मन संस्थानों के सामने प्रदर्शन हुए थे. ऐसी शिकायत भी की जा रही थी कि जर्मनी में इस मामले की लीपापोती की जा रही है. लेकिन देर आयद, दुरुस्त आयद. जर्मन पुलिस और न्याय विभाग की ओर से सख़्ती से इस मामले की जांच की गई, और जुलाई में हुई इस घटना के बाद अदालत में तुरंत इस मामले को लाया गया, आज सज़ा भी सुना दी गई. न्यायाधीश बिरगित वीगांड ने अपने फ़ैसले में इसे हत्या का एक नृशंस मामला कहा है. जर्मन कानून के मुताबिक इसका मतलब है कि 15 साल बाद उसे बरी करने के लिए अर्ज़ी नहीं दी जा सकती है. उसे जेल के सींखचों के पीछे ही रहना पड़ेगा. जर्मनी में मौत की सज़ा नहीं दी जा सकती है. इस प्रकार यह देश के कानून के मुताबिक सबसे बड़ी सज़ा है.
आलेक्स वीन्स अपनी मां के साथ कज़ाकस्तान से आया जर्मन मूल का आप्रवासी है. उसे ख़ासकर मुस्लिम आप्रवासियों से चिढ़ थी, और वह जर्मनी में पाई जाने वाली सांस्कृतिक बहुलता से नाराज़ था. न्यायाधीश वीगांड के फ़ैसले में इस बात की ओर विशेष रूप से ध्यान दिलाया गया है कि व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं, बल्कि धार्मिक द्वेष और नस्ली उन्माद के कारण यह अपराध किया गया था. इस फ़ैसले के ज़रिये सिर्फ़ एक अपराधी युवक को सज़ा नहीं दी गई है, बल्कि यह इस बात की भी पुष्टि है कि किन सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर आज का जर्मन राज्य टिका हुआ है, और किन बातों की यहां कतई इजाज़त नहीं है.
फ़ैसले पर टिप्पणी करते हुए जर्मनी में मिस्र के राजदूत रामज़ी एज़ेलदीन रामज़ी ने कहा है कि उन्हें इस पर गहरा संतोष है. उम्रक़ैद की मांग की गई थी, और उम्रक़ैद की सज़ा मिली है.
अदालत के फ़ैसले में यह टिप्पणी भी की गई है कि कज़ाकस्तान के रूसी माहौल से आया आलेक्स वीन्स जर्मनी के समाज में अपने आपको हमेशा अलगथलग महसूस करता था. उसके जीवन में निराशा थी, लेकिन अपनी करनी से उसने इसे बदतर और नाकाम बना दिया.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: राम यादव