महिलाओं पर एक देश को खड़ा करने की जिम्मेदारी
२९ सितम्बर २००८इस पूर्वी अफ्रीकी देश में नरसंहार के बाद कमोबेश समूची व्यवस्था को फिर से स्थापित करने में महिलाओं ने बड़ा रोल अदा किया है. कहते हैं कि रवांडा की महिलाओं ने नरसंहार के वक्त जितना दर्द झेला है उसे भुलाने के लिए एक नहीं कई जिंदगियों की जरूरत है. अप्रैल 1994 से जुलाई 1994 तक तकरीबन 100 दिनों के अंदर रवांडा में हुए कत्लेआम में 8 लाख लोग मारे गए. इस नरसंहार में बच्चे, बुज़ुर्ग, नौजवान, पुरूष या महिला, किसी को नहीं छोड़ा गया. पहली बार देखने में आया कि बड़े पैमाने पर महिलाओं के साथ बालात्कार को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया. बताते हैं कि बहुत से लोगों के अंगों को काटकर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया. वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जिन्हें जंगली जानवरों का शिकार बनने के लिए छोड़ दिया गया. 46 साल की आगनेस मुकाबारांगा वकील और चार बच्चों की मां हैं, साथ ही संसद की सदस्य भी. इन घोर जघन्य अपराधों के, महिलाओं पर पड़ने वाले असर को वह इस तरह बताती हैं कि पुरूषों और लडकों को इस जनसंहार में सबसे ज़्यादा निशाना बनाया गया. उनकी जान ली गई. इस लिए अब हम महिलाओं को इस देश के लिए ज़िम्मेदारी निभानी है. हमे न्याय, पुनर्निर्माण और एक नयी राजनीति सोच के लिए संघर्ष करना है. इसलिए महिलाओं की अहम भूमिका है.
ज्यादातर इस जनसंहार में हूतु जाति के लोगों ने तुत्सी अल्पसंख्यक और हुतू जाति के लोगों का कत्लेआम किया. वहीं हुतू जातियों के लोग तो इस खून खराबे में शामिल ही नहीं होना चाहते थे. अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर आरोप है कि उसने इस नरसंहार को रोकने का कोशिश ही नहीं की. कुछ लोग यह भी कहते है कि उसमें इतनी क्षमता ही नहीं थी. जबकि संयुक्त राष्ट्र और खासकर फ्रांस के सैनिक वहां तैनात थे.
आगनेस मुकाबारांगा का मानना है कि महिलाओं में मेल मिलाप करने की ज़्यादा क्षमता होती है और कि वह समझौतों के लिए भी तैयार रहती हैं. और यही नरसंहार में हिंसा के उन्माद पर लगाम लगाने के लिए बहुत ज़रूरी है. आगनेस ने खुद अपने कई भाइयों और अन्य रिश्तेदारों को खोया. इसलिए वकील के तौर पर उनके लिए भी जनसंहार में शामिल गुनहागारों का बचाव करना काफी मुश्किल है. लेकिन वह कहती हैं, 'हमारे समाज में हम महिलाओं को न्यांबिंगा कहते हैं. इसका मतलब है कि वह समाज में पुल का काम करतीं हैं, मिसाल के तौर पर वह घर में मेहमानों का स्वागत करती हैं.'
रवांडा अब दुनिया का ऐसा देश हैं जहां संसद में पुरूषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा हैं, यानी जितनी महिलाएं वहां राजनीति में हैं उतनी किसी और देश में नहीं हैं. इसका एक कारण यह है कि पुरुषों की संख्या बहुत कम हो गई है. लेकिन इसके अलावा रवांडा की सरकार, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी इस बात पर ज़ोर दिया कि महिलाएं शांति मज़बूत करने में सक्रिय भूमिका निभाएं. अभी अभी चुने गए संसद में महिलाओं की संख्या 55 फीसदी से भी ज़्यादा है. मुकाबारांगा का कहना है, 'मैने हमेशा सब को यह समझाने की कोशिश की है की हम भविष्य को नये सिरे से स्थापित करने की कोशिश करें ताकि ऐसा दोबारा कभी नहीं हो. पिछले दस सालों में हमने कई क्षेत्रों में सफलता पाई है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है.'
बाकी मिसाल के तौर पर यह है कि एक महिला राष्ट्रपति बने. 1962 से फ्रांस से स्वतंत्रता पाने के बाद सिर्फ एक ही बार महिला को प्रधानमंत्री पद मिला है. वैसे राजनिति में महिलाओं की दमदार भागीदारी और तमाम सकारात्मक संकेतों के बावजूद महिला राजनीतिज्ञ मानती हैं कि उनकी बातों पर अब भी कम ही विश्वास किया जाता है.