भरोसे की कमी से जूझते रहे हैं अमेरिका-पाकिस्तान संबंध
अमेरिका 1947 में दुनिया के नक्शे पर आए पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले कुछ मुल्कों से एक था. हालांकि पिछले 70 सालों के इन संबंधों ने कभी दोस्ती तो कभी तनाव भी महसूस किया है.
अमेरिका के साथ
अपने गठन के शुरुआती सालों में पाकिस्तान के सामने विकल्प था कि वह या तो सोवियत संघ के साथ जाए या संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का हाथ थामे. पाकिस्तान ने दोनों में से अमेरिका को चुना.
पहले प्रधानमंत्री की अमेरिकी यात्रा
पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने 1950 में अपने पहले अमेरिकी यात्रा में तात्कालिक अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन से मुलाकात की. कहा जाता है कि इस यात्रा में ट्रूमेन ने उनसे अनुरोध किया कि वह अमेरिका खुफिया एजेंसी को सोवियत संघ की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए पाकिस्तान में एक बेस बनाने की अनुमति दें लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने इनकार कर दिया.
1954 का रक्षा समझौता
अमेरिका और पाकिस्तान के बीच 1954 में एक रक्षा सहयोग समझौता हुआ. दरअसल अमेरिका को डर था कि कहीं पाकिस्तान, सोवियत संघ के प्रभाव में ना आ जाए. वहीं इस्लामाबाद, भारत के साथ सुरक्षा को लेकर संदेह रखता था. इस समझौते के तहत पाकिस्तानी सैनिकों ने अमेरिका जाकर ट्रेनिंग ली तो वहीं अमेरिका ने पाकिस्तान के रावलपिंडी में एक सैन्य सहायता सलाहकार समूह बनाया.
1960 का दशक
पश्चिमी पाकिस्तान में 60 के दशक में अमेरिका को भारी समर्थन था. हालांकि अमेरिका से मिलने वाली अधिकतर सैन्य और वित्तीय सहायता पश्चिमी पाकिस्तान को मिल रही थी. इसके चलते पूर्वी पाकिस्तान में अविश्वास का माहौल था. उस दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान ने अमेरिकी विमानों को सोवियत संघ की जासूसी करने के लिए अपने क्षेत्र के इस्तेमाल की अनुमति भी दी.
मदद में कटौती
इस दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए तय की गई सहायता राशि में इजाफा किया. हालांकि आधी से अधिक राशि 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बह गई. यु्द्ध के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता में कटौती की. अमेरिका के इस कदम का पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था का बेहद बुरा असर पड़ा.
1970 का दशक
शीत युद्ध के दौरान अहम साझेदार रहे पाकिस्तान का अमेरिका ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में साथ दिया. अमेरिका ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता और हथियार देने का समझौता किया था. वहीं पाकिस्तान ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की पहली चीन यात्रा में अहम भूमिका निभाई थी. अमेरिका-पाकिस्तान समझौते के बाद भारत ने रूस के साथ समझौता किया था.
भुट्टो का दौर
1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार के बाद भी अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध बने रहे. 1974 में जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. माना जाता है कि भुट्टो समाजवादी विचारधारा के थे लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के साथ दोस्ती के चलते पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में कोई फर्क नहीं पड़ा.
1976-1979 का दौर
इस दौरान जिमी कार्टर अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुने गए. कार्टर ने परमाणु हथियारों का प्रसार रोकने पर महत्वपूर्ण पहल की. इस दौरान पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली मदद में कटौती की गई. कार्टर और भुट्टो के बीच मतभदे कई मुद्दों पर खुलकर दुनिया के सामने आए.
80 का दशक
पाकिस्तान में जिया-उल-हक के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध एक बार फिर सैन्य समझौतों और सुरक्षा नीतियों के चलते परवान चढ़ने लगे. इसी दशक में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अफगानिस्तान में सोवियत संघ समर्थक ताकतों के खिलाफ संयुक्त अभियान छेड़े.
इस्राएल के बाद पाकिस्तान
इस दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान को करोड़ों डॉलर की सैन्य सहायता और आर्थिक समझौतों के नाम पर मदद की. 1981 में पाकिस्तान को अमेरिका से तकरीबन 3.2 अरब डॉलर की आर्थिक मदद मिली. 1987 आते-आते पाकिस्तान अमेरिकी मदद पाने वाला इस्राएल के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया. हालांकि 1984 से 1987 के दौरान परमाणु गतिविधियों के चलते पाकिस्तान को मिलने वाली मदद पर सवाल उठने लगे.
1990 का दशक
90 का दशक आते-आते सोवियत संघ के विघटन के बाद पाकिस्तान की महत्ता अमेरिका के लिए पहले जैसी नहीं रह गई. 1992 में दोनों देशों के रिश्तों को उस वक्त झटका लगा जब अमेरिका ने पाकिस्तान को भारत में आतंकवाद फैलाने वाले उग्रवादी समूहों और गुटों का साथ देने को लेकर चेतावनी दी. पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने अमेरिका का दौरा किया और अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मध्यस्थता की अपील की.
1998 का परमाणु परीक्षण
पाकिस्तान ने 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण के जवाब में परमाणु परीक्षण किया. अमेरिका ने दोनों देशों पर प्रतिबंध लगा दिए. हालांकि इसी साल अमेरिका ने दोनों देशों पर से कृषि उत्पाद खरीदने के लिए प्रतिबंध हटा भी दिए.
2000 का दशक
अमेरिका ने 9/11 के आतंकवादी हमले के बाद पूरी दुनिया से आतंकवाद को खत्म करने की मुहिम छेड़ी. इस पहल में पाकिस्तान अमेरिका का सबसे अहम साझेदार साबित हुआ. इसी मुहिम के तहत पाकिस्तान ने अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए अपने सैन्य बेस को इस्तेमाल करने की अनुमति दी. इस दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान को गैर-नाटो साझेदार भी घोषित कर दिया था.
2011 में मारा गया ओसामा बिन लादेन
मई 2011 में अमेरिकी सेना ने पाकिस्तान के एबटाबाद में एक सैन्य ऑपरेशन में आतंकवादी संगठन अल-कायदा प्रमुख ओसामा बिन-लादेन को मार डाला. हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा यह दावा करते रहे कि एबटाबाद के ऑपरेशन की खबर पाकिस्तानी सेना से साझा नहीं की गई थी, लेकिन आईएसआई दावा करता है कि ऑपरेशन दोनों देशों ने संयुक्त रूप से किया था.
रिश्तों में आई दरार
2011 के इस अमेरिकी ऑपरेशन के बाद दोनों देशों के रिश्तों में दरार आई. इसी दौरान 24 पाकिस्तानी सैनिक अमेरिकी सेना के एक हवाई हमले में मारे गए. नतीजतन पाकिस्तान सरकार ने अमेरिकी सेना से उस बेस कैंप को खाली करने का आदेश दे दिया जिसे अमेरिकी सेना तालिबान के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए इस्तेमाल कर रही थी.
2018 और 2019
2018 में अमेरिका ने अपनी एक घोषणा में कहा कि वह पाकिस्तान में चल रहे सारे सुरक्षा सहायता कार्यक्रम को रद्द करता है. यही वही वक्त था जब पाकिस्तान ने तीखे स्वर में कहा था कि उसे अब अमेरिका की कोई जरूरत नहीं है. हालांकि 2019 आते-आते दोनों देश एक बार फिर अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए एक साथ आए हैं.
ट्रंप के दौर में संबंध
2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभालने वाले डॉनल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के खिलाफ तीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उसे आतंकवादी संगठनों के लिए सुरक्षित पनाहगाह करार दिया. अपने एक ट्वीट में ट्रंप ने कहा कि अमेरिका पाकिस्तान को पिछले 15 सालों में बेवकूफों की तरह 33 अरब डॉलर का अनुदान दे चुका है. लेकिन बदले में पाकिस्तान आतंकवादियो को पनाह दे रहा है जिसे अमेरिका अफगानिस्तान में ढूंढ रहा है.