बिहार में कितना सुधर सका शिक्षा का स्तर
३१ जनवरी २०२५स्कूली शिक्षा के बारे में एनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसएआर) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार बिहार के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा एक के 31.9 प्रतिशत विद्यार्थियों को 1 से 9 तक की गिनती नहीं आती है. तीसरी कक्षा के केवल 26.3 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा दो का सरल पाठ पढ़ पाते हैं. वहीं तीसरी कक्षा के 37.5 प्रतिशत बच्चे कक्षा दो के स्तर का जोड़ घटाव कर पाते हैं.
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इसी तरह कक्षा पांच में आज भी 7.6 प्रतिशत बच्चे किताब नहीं पढ़ पाते, जबकि 32.5 प्रतिशत बच्चे ही भाग देने जैसे गणित के सवालों को हल नहीं कर पाते हैं. वर्ग पांच के 36.2 प्रतिशत बच्चे ही तीन अंकों का भाग कर पाते हैं. सरकारी स्कूलों में कक्षा आठ के 62 फीसदी बच्चे ही भाग देने के सवालों को हल करने में सक्षम हैं, जबकि प्राइवेट स्कूल में यह आंकड़ा 85 प्रतिशत तक है.
सरकारी स्कूलों में लड़कियां अधिक
ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में दाखिले का प्रतिशत देश में सबसे अधिक बिहार में हैं. छात्रों की तुलना में छात्राएं सरकारी स्कूलों में अधिक पढ़ती हैं, जबकि निजी स्कूलों में छात्रों की संख्या अधिक है. राज्य के ग्रामीण इलाके में छह से 14 साल के 80 फीसदी बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 66.8 प्रतिशत है.
राज्य के सरकारी स्कूलों के प्रति लड़कियों का रुझान बढ़ा है. बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या में भी कमी आई है. दिलचस्प यह कि लड़कियों से ज्यादा लड़के पढ़ाई छोड़ रहे हैं. बीते दो साल में आठवीं तक एडमिशन लेने वाले छात्र घटे हैं. कक्षा एक से आठ तक में लड़कों से अधिक लड़कियां हैं. इनका प्रतिशत क्रमश: 86.2 तथा 92.4 है. आयु के हिसाब से देखें तो सात से दस साल की उम्र में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में नाम लिखाने वाले लड़कों की संख्या 96 प्रतिशत है तो वहीं लड़कियों की संख्या 96.6 प्रतिशत है.
बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के बाद अब बच्चों की भी होगी डिजिटल हाजिरी
छह से 14 साल के 97 प्रतिशत से अधिक बच्चे स्कूल जाते हैं. जबकि 15 से 16 साल के 9.5 फीसदी लडके और 7.8 प्रतिशत लड़कियों का किसी स्कूल में नाम नहीं है. शिक्षाविद बीके प्रियदर्शी कहते हैं, ‘‘राज्य सरकार से लड़कियों को दी जाने वाली सुविधाओं के कारण स्कूलों में इनकी संख्या बढ़ी है और ड्राप आउट भी कम हुआ है. फिर नामांकन एवं नौकरी में 35 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान से भी पढ़ाई के प्रति बच्चियां काफी सजग हुई हैं.''
बुनियादी सुविधाओं में सुधार
केंद्र सरकार की ओर से जारी एनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट कोविड महामारी के बाद देश के अधिकांश राज्यों में पढ़ाई के स्तर में सुधार की ओर इशारा करती है. इनमें बिहार भी शामिल है. बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के मामले में राज्य में लगातार सुधार हुआ है. प्रदेश के 81.1 फीसदी स्कूलों में दोपहर के भोजन के लिए रसोई है. 92.9 फीसदी स्कूलों में यह भोजन दिया जा रहा है.
88.7 प्रतिशत स्कूलों में पीने के पानी तो 82.5 फीसद स्कूलों में टॉयलेट की सुविधा है. राज्य के 83.5 प्रतिशत विद्यालयों में कम्प्यूटर की सुविधा नहीं है, किंतु वीडियो खोजने या व्हाट्सएप का उपयोग करने में बिहार के किशोर आगे हैं. 86.1 फीसदी इसके उपयोग कर रहे हैं. जानकारी के लिए इंटरनेट इस्तेमाल करने में राष्ट्रीय औसत 79.3 प्रतिशत की तुलना में राज्य का आंकड़ा 80.9 है. राज्य में 14 से 16 आयु वर्ग के 82.1 प्रतिशत बच्चों के पास स्मार्टफोन है. वर्तमान में राज्य के सभी 9,430 माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में छात्र-छात्राओं को कंप्यूटर की शिक्षा एक विषय के रूप में दी जा रही है.
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प्रियदर्शी कहते हैं, ‘‘स्कूलों में कंप्यूटर की पढ़ाई से बच्चे डिजिटल दुनिया के करीब आ रहे हैं. सरकार की योजना कक्षा एक से कंप्यूटर शिक्षा देने की है. इससे प्राथमिक और मध्य विद्यालय के बच्चे भी माइक्रोसॉफ्ट वर्ड, एक्सेल, एमएस आफिस से परिचित होंगे, जिससे वे कुशल हो सकेंगे. एआई के इस दौर में यह बहुत ही जरूरी है.''
बड़े बदलाव की तैयारी
राज्य में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार तथा प्राइवेट स्कूलों को टक्कर देने के लिए कई स्तर पर बदलाव किए जा रहे हैं. अब स्कूलों की रैंकिंग की व्यवस्था की जा रही है. नये शैक्षणिक सत्र से विद्यालयों में संचालित विभिन्न गतिविधियों, संसाधन उपयोग, स्वच्छता व साफ-सफाई तथा शिकायत निवारण के आधार पर यह रैंकिंग की जाएगी. इसके लिए सौ अंक तय किए गए हैं.
बिहार में 43 हजार प्राथमिक विद्यालय हैं, जहां पहली से पांचवीं तक की पढ़ाई होती है. 29 हजार मध्य विद्यालय हैं, जहां कक्षा एक से आठ तक पढ़ाया जाता है. वहीं, 9,360 माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूल हैं, जहां नौवीं से 12वीं तक की पढ़ाई होती है. सभी श्रेणी के विद्यालयों के लिए अलग-अलग रैंकिंग होगी.
अंकों के आधार पर वन से फाइव स्टार तक के स्कूल होंगे. यदि किसी स्कूल को 85 से सौ अंक प्राप्त होता है तो वह फाइव स्टार स्कूल बन जाएगा. सुधार की इसी कड़ी में स्कूलों के लिए छात्र-शिक्षक मानक निर्धारित किए गए हैं. अब राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम पांच शिक्षकों की तैनाती अनिवार्य होगी. छात्रों की संख्या के अनुसार शिक्षकों की संख्या बढ़ती जाएगी.
फिलहाल, राज्य के सरकारी स्कूलों में करीब साढ़े पांच लाख से अधिक शिक्षक कार्यरत हैं. प्रियदर्शी कहते हैं, ‘‘असर की रिपोर्ट हो या यू-डायस (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस) की, यह साफ है कि सरकारी स्कूलों की दशा-दिशा में उतना सुधार नहीं हुआ है जितना कि राज्य सरकार द्वारा करीब 22,200 करोड़ से अधिक की राशि खर्च किए जाने से होना चाहिए था. जब तक बुनियादी सुविधा, पढ़ाई का स्तर और शिक्षकों का आचार-व्यवहार अच्छा नहीं होगा, तब तक सरकारी स्कूलों से बच्चों की दूरी बरकरार ही रहेगी.''