बर्लिन में रातों को फूंकी जा रही हैं कारें
१९ अगस्त २०११जर्मनी की राजधानी बर्लिन में इस साल 130 कारों को आग लगाई जा चुकी है. रात के वक्त इन कारों को फूंका जाता है. जलाई जाने वाली कारें आमतौर पर लग्जरी यानी बहुत महंगी होती हैं. इन घटनाओं में बीते एक हफ्ते में इतनी तेजी आई है कि जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल तक फिक्रमंद हैं. उन्होंने कहा है कि जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. लेकिन दिक्कत यह है कि पुलिस पता लगा ही नहीं पा रही है कि ये लोग कौन हैं जो महंगी कारों को आग लगा रहे हैं.
ऐसी आशंका जताई जा रही है कि कारों को फूंकने वाले ये लोग उग्र वामपंथी या उग्र दक्षिणपंथी हो सकते हैं. लेकिन पुलिस का कहना है कि यह काम किसी राजनीतिक विचारधारा से अप्रभावित युवकों का भी हो सकता है जो सिर्फ मजे के लिए ऐसा कर रहे हों.
आज की बात नहीं
बर्लिन में कार जलाने का सिलसिला 2007 में शुरू हुआ था. शहर के मेयर क्लाउस वोवेराइट का कहना है कि पहले कार जाना राजनीतिक विरोध का एक तरीका था. जलाने वाले सिर्फ महंगी कारों को चुनते थे. आमतौर पर ये घटनाएं फ्रीडरिष्सहाइन और क्रोएत्सबुर्ग में होती थीं जहां युवकों में सक्रियता और आक्रामकता देखी गई. लेकिन वोवेराइट कहते हैं कि हाल की घटनाएं पूरे शहर में हो रही हैं और ये पहले से अलग हैं.
प्रशासन के लिए फिक्र की बात यह है कि इस तरह की घटनाएं इसी महीने ब्रिटेन में हुए दंगों जैसी घटनाओं को जन्म दे सकती हैं. हालांकि वोवेराइट इन आशंकाओं को खारिज करते हैं. वोवेराइट सितंबर में दोबारा मेयर का चुनाव लड़ रहे हैं. वह कहते हैं, "कार जलाने की इन घटनाओं का ब्रिटिश दंगों से कोई लेना देना नहीं है."
डीटर वीफेलस्प्यूट्ज की राय इस मामले में मायने रखती है. वह सांसद हैं और वाम रुझान वाली पार्टी सोशल डेमोक्रैट्स के अपराध विशेषज्ञ भी हैं. वह बर्लिन के मेयर भी रह चुके हैं. वह कहते हैं, "यह आतंकवाद का संकेत हो सकता है." वह 1970 और 1980 के दशक में सक्रिय रहे उग्र वामपंथी संगठन रेड आर्मी फैक्शन (आरएएफ) को याद करते हैं. तब भी शुरुआत आग लगाने की घटनाओं से ही हुई थी जो बाद में बम धमाकों और हत्याओं तक जा पहुंची थी.
आरएएफ की संस्थापक उलरिके माइनहोफ ने एक बार कहा था, "अगर कोई एक कार को आग लगाता है तो यह अपराध है. अगर कोई सैकड़ों कारों को फूंकता है तो राजनीतिक कार्रवाई है."
पुलिस की राय अलग
लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो इन घटनाओं को ज्यादा अहमियत नहीं देना चाहते. जर्मन पुलिस ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष बर्नहार्ड विटहाउट कहते हैं, "इन घटनाओं के ज्यादा मतलब निकालने से बचना चाहिए. जो कोई भी इन आग लगाने वालों की तुलना आतंकवादियों से कर रहा है वह ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे रहा है और बर्लिन पुलिस की पीठ में छुरा भोंक रहा है."
घटनाओं को रोकने की बर्लिन पुलिस की सारी कोशिशें नाकाम हो रही हैं. गुरुवार रात को पुलिस ने हेलिकॉप्टर से निगरानी की. और ज्यादा पुलिस पेट्रोल को तैनात किया गया. इसके बावजूद नौ गाड़ियों को आग लगा दी गई और तीन को नुकसान पहुंचाया गया.
कारों का चुनाव किसी विशेषता के आधार पर नहीं हो रहा है. हमेशा नई महंगी कारों को ही आग नहीं लगाई जाती. पश्चिमी बर्लिन के शार्लोटनबुर्ग जैसे धनी लोगों के इलाकों से लेकर पूर्व में नोए-होहेनशोएनहाउजेन जैसे मध्यमवर्गीय इलाकों तक में घटनाएं हो चुकी हैं.
चांसलर अंगेला मैर्केल को यकीन है कि ये घटनाएं ब्रिटेन जैसे दंगों में तब्दील नहीं होंगी. लेकिन तब भी वह आग लगाने की वारदात से परेशान तो हैं. वह कहती हैं, "यह कैसा व्यवहार है? लोगों की जिंदगियों को खतरे में डाला जा रहा है."
निगरानी हल नहीं
आग लगाने के मामलों में अब तक सिर्फ एक व्यक्ति को सजा हुई है. 43 साल के एक बेरोजगार बर्लिनवासी को पिछले हफ्ते एक बीएमडब्ल्यू कार को आग लगाने का दोषी पाया गया और उन्हें 22 महीने की कैद की सजा दी गई. हालांकि इस सजा को निलंबित कर दिया गया. उन्हें 300 घंटे तक सामुदायिक सेवा करने को कहा गया.
लेकिन इससे घटनाओं में कमी आने का संदेश नहीं जा रहा है. बर्लिन 35 लाख लोगों का शहर है. वहां 10 लाख कारें हैं जिन्हें पांच हजार किलोमीटर की दूरी में पार्क किया जाता है. सिर्फ निगरानी से इतने बड़े इलाके को नहीं संभाला जा सकता. इसके लिए सोच में और व्यवहार में बदलाव लाना होगा.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः आभा एम