फ़ुटबॉल में आरक्षण
३० मई २००८क्लब फ़ुटबॉल में आरक्षण कर दिया गया है. इसके तहत किसी भी क्लब में विदेशी खिलाड़ियों की संख्या सीमित कर दी गई है. फ़ुटबॉल की सबसे बड़ी संस्था फ़ीफ़ा ने तय कर दिया है कि इन टीमों में विदेशी खिलाड़ियों की संख्या पांच से ज़्यादा नहीं हो सकती है. समझा जाता है कि घरेलू स्तर पर फ़ुटबॉल को बढ़ावा देने के लिए ये क़दम उठाया गया है.
सिडनी में फ़ीफ़ा की अहम बैठक में अध्यक्ष सेप ब्लाटर ने ये ऐतिहासिक प्रस्ताव रखा, जिस पर ज़्यादातर सदस्यों की रज़ामंदी बन गई. यहां शामिल 155 सदस्यों ने इसके हक़ में वोटिंग की, जबकि पांच की राय इसके ख़िलाफ़ थी. इससे पहले 1995 के क़ानून के मुताबिक़ किसी क्लब पर इस तरह की पाबंदी नहीं थी और कोई भी क्लब टीम में कितने ही विदेशी खिलाड़ियों को शामिल कर सकता था।
लेकिन फ़ीफ़ा के इस फ़ैसले से यूरोपीय संघ नाराज़ है. संघ का कहना है कि ये फ़ैसला ग़ैरक़ानूनी है. संघ में मज़दूरी को लेकर जो क़ानून है, उसके तहत इसमें शामिल 27 देशों के लोग बिना रोक टोक के एक देश से दूसरे देश जा सकते हैं और वहां काम कर सकते हैं. संघ का कहना है कि फ़ीफ़ा के इस नियम से क़ानून का उल्लंघन होता है और कुछ लोगों के लिए काम की शर्तें लगती हैं.
हालांकि फ़ीफ़ा अध्यक्ष ब्लाटर ने कहा कि वो इसे क़ानून से जोड़ कर नहीं देखते हैं और फ़ुटबॉल के भले के लिए ये एक अच्छा क़दम है. उन्होंने कहा कि अगर ज़रूरत पड़े तो क़ानूनों में कुछ बदलाव भी लाए जा सकते हैं.
फ़ीफ़ा की योजना है कि साल 2010/2011 सत्र में ये नियम अमल में आ जाए, हालांकि अभी इसके लागू होने में फ़िलहाल कुछ पेचीदगियां दिख रही हैं.