तिहाई हक़ के लिए लड़ती आधी आबादी
५ मई २००८भारत में महिला आरक्षण के लिए एक बार फिर क़वायद शुरू हो रही है। सरकार ने इसी सत्र में इस बिल को संसद में पेश करने का वादा किया है और सत्र का आख़िरी हफ़्ता आज शुरू हो रहा है। समाचार एजेंसी आईएएनएस ने भरोसेमंद सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज क़ानून मंत्रालय के साथ मिल कर इस मुद्दे का ख़ाका तैयार करेंगे। सरकार के पास दो उपाय हैं। या तो मौजूदा सीटों के अंदर ही 33.3 फ़ीसदी आरक्षण महिलाओं को दे दिया जाए या फिर इतनी सीटें बढ़ा दी जाएं। हालांकि ज़्यादातर महिला नेता मानती हैं कि समाज और सरकार में उन्हें हक़ देने की इच्छा शक्ति ही नहीं है।
यही वजह है कि आधी आबादी को तिहाई हक़ देने का मामला बारह साल से संसद के पचासों खंभों की भूल भुलैयां में घूम रहा है। सरकार इसके लिए सड़क तैयार करने की बात कहती है लेकिन अभी तो इसे अंधेरे से बाहर निकालना ही चुनौती है। 1996 से अब तक कई बार इसे आगे बढ़ाने की कोशिश हुई लेकिन नेताओं को कुछ न कुछ कसर दिख ही जाता है। कोटे के अंदर कोटे की बात होती है। यानी ओबीसी और एससी-एसटी को अलग से आरक्षण देने की बात।
चुनाव आते हैं और जाते हैं। महिलाओं को अधिकार देने की बात धरी रह जाती है। पिछली बार सिर्फ़ 44 महिलाएं संसद में चुन कर आईं। 33 फ़ीसदी तो छोड़िए, ये लोकसभा की आठ फ़ीसद भी नहीं हैं।
वैसे, जब भी महिलाओं को आरक्षण देने की बात आती है, कोई दूसरा मुद्दा हावी हो जाता है। इस वक्त महंगाई और उससे जुड़े लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का मामला तूल पकड़ रहा है। उन्होंने 32 सांसदों के आचरण का मुद्दा विशेषाधिकार समिति के पास भेज दिया है, जिसके बाद विपक्ष उनके ख़िलाफ़ एकजुट हो रहा है।