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घर वापसी से कतराते लोग

१ सितम्बर २००९

पिछले दिनों उत्तरी म्यांमार में चीनी मूल के अल्पसंख्यकों और सैन्य शासन के बीच संघर्ष की वजह से हज़ारों लोग चीन की ओर भाग गए. अब झड़पों में कमी आई है लेकिन शरणार्थी अपने गांव वापस जाने से कतरा रहे हैं.

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सीमा पर लगे शिविरों में शरण लिए हुए हैं चीनी मूल के अल्पसंख्यकतस्वीर: AP

सोमवार को अमेरिका ने म्यांमार से कहा कि उसे जातीय अल्पसंख्यकों पर हमले बंद करने चाहिए. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इयन केली ने कहा, "म्यांमार के अधिकारियों को अपनी सैन्य कार्रवाई को रोक कर अल्पसंख्यकों और वहां के लोकतांत्रिक विपक्ष के साथ बातचीत शुरु करनी चाहिए. घमासान लड़ाई की वजह से आम लोग बेघर हो गए हैं और उन्हें थाइलैंड और चीन में शरण लेनी पड़ रही है. इसका असर म्यांमार की स्थिरता पर भी पड़ा है". रविवार को म्यांमार के सरकारी मीडिया ने कहा कि झड़पों में आठ विद्रोहियों और 26 सुरक्षा कर्मियों की मौत हो गई थी.

जहां म्यांमार पर अमेरिका और यूरोपीय संघ ने कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं, वहीं चीन म्यांमार के समर्थकों में से एक है और वहां के प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करता है. लेकिन चीन म्यांमार में चीनी मूल के अल्पसंख्यकों को लेकर चिंतित है. चीनी अधिकारियों के मुताबिक़ झगड़ों में चीन के दो नागरिक भी मारे गए. चीन के युन्नान प्रांत के प्रवक्ता ली हुई के मुताबिक म्यांमार से उन्हें ख़बर मिली है कि शरणार्थी वापस जा सकते हैं, हालांकि बहुत लोग वापस जाना नहीं चाहते. कई लोगों का मानना है कि म्यांमार का सेन्य शासन यानी खुंता अब भी आम लोगों को मार रहा है. चीन ने इन लोगों के लिए राहत शिविर लगवाए हैं और दवाईयों भी दी जा रही हैं.

1989 में म्यांमार की सरकार और कोकांग सेना, जिसे औपचारिक तौर पर म्यांमार नैशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी के नाम से जाना जाता है, ने मिलकर युद्धविराम पर हस्ताक्षर किए थे. इस साल 8 अगस्त को पुलिस ने हथियारों के एक ग़ैर क़ानूनी भंडार पर छापा मारा जिससे लड़ाई शुरु हो गई. माना जाता है कि सेना कोकांग बलों को सरकारी बलों में शामिल करना चाहती थी. खुंता चाहती है कि अगले साल आम चुनावों से पहले इन अल्पसंख्यकों की सेनाओं को हथियार डालने पर मजबूर कर दिया जाए या फिर उन्हें सरकार के नियंत्रण में लाया जाए.

रिपोर्ट- एजेंसियां/एम गोपालकृष्णन

संपादन- ए कुमार