किसानों को मिला अपने बीजों का अधिकार
१२ जुलाई २०१२फैसले के केंद्र में यूरोपीय संघ का एक कानून था. यूरोपीय संघ के बीज अधिनियम के अनुसार बाजार में लाए जाने वाले बीज के सभी प्रकारों को गुणवत्ता की एक महंगी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और एक सरकारी रजिस्टर में शामिल किया जाता है. छोटे पैमाने पर स्थानीय बीजों का उत्पादन करने वाले किसान इस शर्त को पूरा नहीं करते. इसलिए एक औद्योगिक बीज कंपनी ने फ्रांस के किसानों के एक नेटवर्क कोकोपेली पर गैर पंजीकृत बीज बेचने के लिए 50 हजार यूरो के हर्जाने का मुकदमा किया था.
यूरोपीय अदालत ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि विवादास्पद यूरोपीय अधिनियम किसानों द्वारा पैदा किए गए बीजों को बेचने पर रोक नहीं लगाता. किसान पुराने और इलाके के बीजों का वितरण कर सकते हैं. इस फैसले का उपभोक्ताओं, किसानों और कृषि उद्योग पर असर होगा.
सलाद हो, मूली हो, सब्जियां हों या टमाटर. आम तौर पर किसान अपने लिए पीढ़ियों से खुद अगले सीजन के बीज बचाते आए हैं और कभी भी यूरोपीय अधिनियम के अनुसार अपने बीजों की महंगी जांच नहीं कराई है. यूं भी इस जांच में 10,000 यूरो से ज्यादा का खर्च होता है. इसलिए अब तक कोई इसे लागू करने पर जोर भी नहीं दे रहा था. इसीलिए बीजों के बहुत से पुराने प्रकार संरक्षित बच पाए हैं.
जर्मनी में पर्यावरण आंदोलन बहुत मजबूत है, यहां किसानों को पारंपरिक अधिकारों का इस्तेमाल करने दिया गया, लेकिन फ्रांस में औद्योगिक स्तर पर बीज का उत्पादन करने वाली कंपनी ग्रैंस बोमां ने बायो किसानों के नेटवर्क कोकोपेली पर मुकदमा कर दिया. कोकोपेली 461 प्रकार के बीज बेचती है जो बीजों की सरकारी सूची में नहीं है. उस पर अनुचित प्रतिस्पर्धा का आरोप लगा.
कभी अमेरिका के विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने कहा था, "जो बीज पर नियंत्रण करेगा उसका दुनिया पर वर्चस्व होगा." मोन्सैंटो, सिनगेंटा और बायर जैसी कंपनियां इसी में लगी हैं. दुनिया के दो तिहाई बीज बाजार पर इनका कब्जा है. ऑस्ट्रिया की छोटे किसानों के संगठन की हाइके शीबेक का कहना है कि कृषि कंपनियां इस बीच जीएम पौधों के अलावा सभी बीजों पर बौद्धिक अधिकार सुरक्षित करना चाहती हैं.
यूरोपीय अदालत में महाधिवक्ता जुलियाने कोकोट ने भी यही दलील दी कि किसानों की आजादी छिनने का खतरा है. उनका कहना है कि पुराने बीजों पर रोक से किसान बड़ी कंपनियों के बीज पर निर्भर होते जा रहे हैं. इतना ही नहीं किसान संगठनों का कहना है कि औद्योगिक बीज खरीदने वाले किसान रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर भी निर्भर हो रहे हैं. उन्हें खाद और कीटनाशकों पर बीज की कीमत का पांच गुना खर्च करना पड़ रहा है.
कोकोट का कहना है कि गैर पंजीकृत बीज के इस्तेमाल पर रोक से जैविक विविधता पर भी असर होगा और औद्योगिक बीज का दबदबा खतरनाक स्तर तक बढ़ जाएगा. यह संभावना भी है कि इस रोक से भविष्य में ऐसे पौधों की कमी हो जाएगी जो मौसम में बदलाव या नई बीमारियों का मुकाबला करने की हालत में हों. इसके अलावा उपभोक्ताओं को भी वह अनाज नहीं मिलेगा जिसके बीज पंजीकृत नहीं हैं. यूरोपीय अदालत के फैसले के बाद अब बायो दुकानों में ऐसी सब्जियों दिख सकेंगी जो लंबे समय से बाजार से गायब थीं.
एमजे/ओएसजे (एएफपी)