कानूनी मुखौटे में रोती तुर्की की महिलाएं
११ जून २०१२आयशा (बदला हुआ नाम) अपने छह भाइयों से भाग रही हैं. अगर वह अपने भाइयों के हाथ लग जाती है तो वह उसकी जान ले लेंगे. सात साल 17 साल की आयशा पर सब भाइयों गोली दागी. उसने हिम्मत करके जबरदस्ती शादी से इनकार किया. एक ऐसी शादी जिसमें उसे अपने से दुगनी उम्र के व्यक्ति के साथ बांधा जा रहा था. आयशा की वकील हुल्या ग्युलबहार कहती हैं, "हम सात साल से उसे बचा रहे हैं अगर हमने छोटी, बिलकुल छोटी सी भी गलती कर दी तो हम उसे खो देंगे. वह अपने दोस्त के साथ जा रही थी. उन्होंने उस लड़के को मार दिया."
वकील और महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली ग्युलबहार ने ऐसे कई मामले देखे हैं. वह कहती हैं कि ये उन्हें रातों में परेशान करते हैं. "लड़कियों की 17 साल के होने से पहले उनकी चुपचाप शादी कर दी जाती है. 12 साल की लड़कियों के साथ उनसे दुगनी उम्र के उनके पति बलात्कार करते हैं. तुर्की में 15 साल की उम्र की एक तिहाई किशोरियां पति या जीवन साथी के हाथों हिंसा, मारपीट या यौन दुराचार का शिकार होती हैं." ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि गांवों में यह संख्या 50 फीसदी के करीब है.
महिलाओं का संहार
इससे भी ज्यादा बुरी स्थिति यह है कि तुर्की में हर दिन कम से कम पांच महिलाओं की हत्या की जाती हैं. ग्युलबहार बताती हैं. इन हत्याओं को ऑनर किलिंग यानी सम्मान के लिए हत्या का नाम दिया जाता है. जो लड़कियां या औरतें परिवार का नाम खराब करती हैं, उनकी हत्या कर दी जाती है. तथाकथित इज्जत मिट्टी में मिलाने का कारण लड़की का बॉयफ्रेंड हो सकता है, विवाहेतर संबंध हो सकता है या फिर ऐसा पहनावा भी हो सकता हैं जो रुढ़िवादी पुरुषों वाले समाज में अच्छा नहीं माना जाता. ग्युलबहार बताते बताते चाय का कप रखती हैं और आक्रोश में कहती हैं, "यह महिलाओं का संहार है, जनसंहार की तरह. हां यही है." ह्यूमन राइट्स वॉच की गौरी फान गुलिक कहती हैं, "तुर्की में घरेलू हिंसा के आंकड़े बहुत ज्यादा हैं. क्योंकि हर दिन महिलाएं अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो रही हैं, नौकरियां कर रही हैं, महिला संगठनों से जुड़ी हैं. इस कारण उन पर जवाबी हमले भी हो रहे हैं. यह साबित करना निश्चित ही मुश्किल है."
मार्च 2012 में तुर्की सरकार ने घरेलू हिंसा को काबू करने के लिए नया कानून लागू किया. जिसमें अविवाहित महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित धारा है. साथ ही ऐसी महिलाओं के लिए भी प्रावधान है जिनकी धार्मिक शादियां कानून में मान्य नहीं है. कानून में सुनिश्चित किया गया है कि इसका उल्लंघन करने वाले या सुरक्षा के आदेश का उल्लंघन करने वाले को कड़ी सजा होगी. कानून का हनन करने वालों को इलेक्ट्रॉनिक पट्टा पहनना होगा. पीड़ित महिलाओं के लिए आश्रय की व्यवस्था करने के लिए भी कहा गया है.
सात साल से भागती
इस कानून की धारा में जजों को अनुमति है कि वह गंभीर खतरे में पड़ी महिलाओं को नई पहचान मुहैया करवाएं. ग्युलबहार को उम्मीद है कि आयशा को नया आईडी कार्ड मिल जाएगा. और इससे उन्हें नया जीवन भी मिलेगा. "पिछले सात साल से आयशा भाग रही हैं, एक जगह से दूसरी जगह छिपने को मजबूर हैं. एक शहर में ज्यादा दिन नहीं रह सकतीं. जब भी मैं उससे बात करती हूं तो नया नंबर होता है. मैं उससे कभी नहीं पूछती कि वह कौन से शहर में रह रही हैं."
आयशा नौकरी नहीं ढूंढ सकती, घर किराए पर नहीं ले सकती यहां तक कि डॉक्टर के पास भी नहीं जा सकती क्योंकि वहां उसे पहचान दिखानी होगी. "उसके भाइयों ने उसे गोली मारी, जो आयशा की त्वचा को छीलती हुई गई. चूंकि उसका इलाज नहीं हो सकता उसे ट्यूमर हो गया है."
ह्यूमन राइट्स की गुलिक कहती हैं, "उदारवादी जजों के पास, जो महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाना चाहते हैं, उनके पास ऐसा करने के लिए नया हथियार है." लेकिन उन्हें इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि इस कानून से तुर्की में कोई बड़ा फर्क पड़ेगा. रुढ़िवादी एके पार्टी के प्रधानमंत्री रिसेप तैयप एर्दोआन ने इस कानून को काफी नर्म कर दिया है. फान गुलिक कहती हैं, "जो बिल मंजूर किया गया है वह प्रस्तावित बिल से बहुत ही कम प्रभावी है. यह एक बहुत कड़ा प्रस्तावित कानून था. प्रधानमंत्री का इसे नर्म करना चिंता की बात है." महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली पुलिस का प्रस्ताव फाइनल बिल से हटा दिया गया.
ग्युलबहार का ऑफिस इस्तांबुल के केंद्र में है, एक ऐसा इलाका जहां महिला पुरुष एक साथ बैठते हैं. लड़कियां छोटे छोटे कपड़े पहन कर घूमती रहती हैं. यहां देख कर लगता ही नहीं कि तुर्की में ऑनर किलिंग जैसी कोई समस्या हो सकती है. उधर ग्युलबहार परेशान हैं क्योंकि उन्हें आयशा का मामला अदालत में लेकर जाना है. नए आईडी कार्ड के लिए आयशा का पता जरूरी है. उन्हें डर सता रहा है कि उसके भाई उसे पकड़ लेंगे. ग्युलबहार कहती हैं, "अब वे जानते हैं कि मैं कहां रहती हूं. उसने कहा था कि वह मुझे गोली मार देंगे." एक बार एक आदमी बंदूक लेकर उनके घर पहुंच गय़ा था. वह कहती हैं, "तुर्की में वकील होना और महिला अधिकारों के लिए लड़ने का मतलब है जान पर खेलना." लेकिन वह आयशा और उसके जैसी महिलाओं के लिए लड़ना नहीं छोड़ेंगी. "वैसे तो यह सरकार का काम है कि वह इन महिलाओं की रक्षा करे, लेकिन अगर वह नहीं कर रही है तो मैं उन्हें बचाने की हर संभव कोशिश करुंगी." ग्युलबहार मानती हैं कि उनके अधिकारों के लिए लड़ने का मतलब कही नहीं कहीं खुद के लिए लड़ना भी है.
रिपोर्टः नाओमी कोनराड, इस्तांबुल (आभा मोंढे)
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी