करवाचौथ पर बाजार का कब्जा
१४ अक्टूबर २०११25 साल की कनिका स्याल का यह पहला करवाचौथ है. व्रत को ले कर वह बहुत उत्साहित हैं, "हम लम्बे समय से अपनी मां को व्रत रखते देखते आए हैं, अब हमारी बारी है." शादी से पहले कनिका स्कूल में टीचर थीं. अब वह घर संभालती हैं. करवाचौथ के लिए उनकी तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं. उनकी मां के करवा चौथ से यह बहुत अलग होने वाला है.
सजना है मुझे सजना के लिए
पारंपरिक रूप से महिलाएं करवाचौथ के दिन हाथों पर मेहंदी लगाती हैं, नए कपड़े खरीदती हैं और घर वालों से उन्हें कई तरह के उपहार मिलते हैं. लेकिन आज कल औरतें इस सब के अलावा भी और बहुत कुछ करती हैं. करवाचौथ से पहले वाली शाम ब्यूटी पार्लर भरे रहते हैं. हर औरत इस दिन सबसे खूबसूरत लगना चाहती है.
कनिका पांच हजार रुपये का फेशियल और बॉडी स्पा ट्रीटमेंट कराने वाली हैं. लगभग हर पार्लर पर करवाचौथ पैकेज खरीदे जा सकते हैं जिनमें बोटॉक्स, लेजर हेयर रिमूवल और खास तरह के फेशियल शामिल होते हैं. शहरों में रहनी वाली महिलाओं के लिए जैसे ये करवाचौथ का हिस्सा ही बन गए हैं. एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसिज में त्वचा विज्ञान विभाग के प्रमुख अमित बांगिया बताते हैं कि इस दौरान ऐसी महिलाओं की तादाद बढ़ जाती है जो अपनी साज सिंगार में विशेषज्ञों की मदद लेना चाहती हैं.
स्वरॉव्स्की की छन्नी
भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था ने मध्य वर्ग के जीने का तरीका बदल दिया है. कभी साधारण जीवन बिताने वाले भारतीय अब बड़े मॉल्स में घूमते हैं और महंगे ब्रैंड्स खरीदते हैं. क्रिस्टल के आभूषणों के लिए मशहूर स्वरॉव्स्की भी महिलाओं को लुभाने के लिए नई नई चीजें ले कर आ रहा है. पति अपनी पत्नियों को अंगूठी या गले का हार ला कर दें, वह जमाना तो पुराना हो गया. अब पति व्रत खोलने के लिए स्वरॉव्स्की की छन्नी उपहार में दे सकते हैं.
फोन कम्पनियां भी पीछे नहीं हैं, ऐसे ऐप्लिकेशन बनाए गए हैं जिनसे फोन की स्क्रीन पर छन्नी बन जाएगी और चांद के दर्शन भी उसी में हो जाएंगे. मेहंदी लगाने वालों के लिए भी यह कमाई का सबसे अच्छा मौका होता है. दोनों हाथों पर मेहंदी लगवाने के लिए पांच हजार रुपये तक देने पड़ सकते हैं.
नारीवादियों का साथ
वैसे ऐसा करने वाली महिलाओं की तादाद ज्यादा नहीं है. शालिनी सूद भादुड़ी इन से दूर ही रहना पसंद करती हैं, "यह बिलकुल बेहूदा है. मुझे नहीं लगता कि एक दिन भूखे रहने से मेरे पति की उम्र बढ़ सकती है." कई नारीवादियों का मानना है कि इस त्यौहार को पूरी तरह से पुरुष प्रधान समाज द्वारा बनाई गई रीत कहना गलत होगा. सेंटर फॉर द स्टडीज ऑफ डेवेलपिंग सोसाइटीज की मधु किश्वर का कहना है, "ऐसे कई रीतिरिवाज हैं जिन्हें औरतों ने पुरुषों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए बनाया है. इन के कारण वे बेहतर पति बन पाते हैं."
रिपोर्ट: रॉयटर्स/ईशा भाटिया
संपादन: वी कुमार