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कंप्यूटर की करामात से बनेंगे स्टंट मैन

२३ जुलाई २००९

मारधाड़ वाली ऐक्शन फ़िल्में जितनी रोमांचक होती हैं, उतनी ही ख़तरनाक भी. सामान्य फ़िल्मी कलाकरों को इन ख़तरों से परे रखने के लिए ऐसी भूमिकाएं स्टंट मैन कहलाने वाले विशेष कलाकारों को दी जाती हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

वे जान हथेली पर रख कर चलने के माहिर होते हैं. लेकिन, अपनी कलाबाज़ी दिखाने में कभी कभी अस्पताल भी पहुंच जाते हैं या जान तक खो बैठते हैं.

एक्शन फ़िल्मों में मार-धाड़, कूद-फांद, कारों की टक्करें या इसी तरह के अन्य दृश्य देखते समय हमारी सांसें थम जाती हैं. कलेजा मुंह को आने लगता है. हम सुधबुध भूल जाते हैं. नहीं सोचते कि यह सब फ़िल्म का नायक नहीं, कोई स्टंट मैन कर रहा है. जान की बाज़ी लगा कर कलाबाज़ी दिखाना ही उसकी पहचान है. लेकिन, कई बार जब किसी स्टंट मैन की सारी चुस्ती- फुर्ती और हिम्मत काम नहीं आती, तब फ़िल्म निर्देशक को कंप्यूटर एनिमेशन की शरण लेनी पड़ती है.

समस्या सिर्फ़ इतनी ही है कि कंप्यूटर एनिमेशन स्वाभाविक नहीं लगते. उन्हें तैयार करने में समय और पैसा भी बहुत लगता है. अतः एक जर्मन वैज्ञानिक ने कृत्रिम बुद्धि वाले वर्चुअल, यानी असली जैसा लगने वाले कंप्यूटरी स्टंट मैन तैयार किये हैं. उन्हें इस बीच हॉलीवुड फ़िल्मों ओर वीडियो गेमों में इस्तेमाल भी किया जाने लगा है.

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जांबाज़ी में है जान का जोखिमतस्वीर: AP

इस युवा जर्मन वैज्ञानिक का नाम है टोर्स्टन राइल. राइल जीव वैज्ञानिक हैं. जब 35 साल के थे और ब्रिटेन के ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे, तब अपने शोधकार्य के लिए मानव शरीर की विभिन्न हरकतों की हूबहू नकलें उतारना चाहते थे--कंप्यूटर की सहायता से ऐसी नकलें कि वे बिल्कुल असली लगें. टोर्सेटन कहते कि "शुरू में हम सोच रहे थे कि हम आदमियों और जानवरों की चाल-ढाल समझना चाहते हैं. समझना चाहते हैं कि उनका तंत्रिकातंत्र उन्हें चलाने-फिराने का काम कैसे करता है और उसका अनुकरण करने का सबसे अच्छा तरीका क्या होगा."

टोर्स्टन राइल ने मनुष्य की चाल-ढाल के कंप्यूटर मॉडल तैयार किये और उन्हें कंप्यूटरी हड्डियों वाले जोड़ और मांसपेशियां भी लगादीं. उनके अंगसंचालन को नियंत्रित करने के लिए उन्हें तंत्रिकाजाल की अनुकृति-जैसे एक कृत्रिम मस्तिष्क से भी लैस कर दिया."हमने क़रीब सौ ऐसे दोपायों के साथ शुरुआत की, जिन में बेतरतीब ढंग के तंत्रिका तंत्र थे और जो वास्तम में बिल्कुल ही चल-फिर नहीं सकते थे. एक-आध शायद एक क़दम चलपाते थे, दूसरे शायद दो क़दम, लेकिन अधिकतर बार-बार लुढ़क जाया करते थे. कंप्यूटर उन में से सबसे अच्छों को ढूंढ कर उन्हें एक तरह से अपने आप को फिर से पैदा करने की अनुमति देता था. दूसरे शब्दों में, ये कंप्यूटरी दोपाये अपने बच्चे बनाते थे, लेकिन इस तरह कि बच्चे अपनी मां या अपने बाप से कुछ अलग होते थे. उन में से सबसे अच्छों को फिर से छांटा जाता था. इसे प्रकृति में होने वाले विकासवादी नैचुरल सेलेक्शन, यानी प्राकृतिक छंटनी की तरह ही, पीढ़ी-दर-पीढ़ी तब तक दुहराया गया, जब तक ऐसा दोपाया नहीं बन गया, जो बिना गिरे-पड़े दौड़ सकता था."

टोर्सटन राइल का यह कंप्यूटरी विकासवाद भी बिना समस्याओं के नहीं था. उन्हें अपने कंप्यूटर के आगे घंटों माथापच्ची करनी पड़ती थी शुरू में "बहुत-सी कमियां थीं. सबसे पहले हमने चौपायों के साथ शुरू किया. शुरू-शुरू में कंप्यूटर प्रोग्राम इस तरह बैठ जाते थे कि इन चौपायों का कोइ-न-कोई पैर अलग हो कर बार-बार गिर जाया करता था. यानी शुरुआती दौर में हमें ढेरों तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ा."

टोर्स्टन राइल उस समय छात्र थे. विशुद्ध वैज्ञानिक दृष्टि से से काम कर रहे थे. बाद में उन्होंने सोचा इस युक्ति को कंप्यूटर एनिमेशन की जगह पर फ़िल्मों और कंप्यूटर खेलों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. 2001 में उन्हों ने ऑक्सफोंर्ड में ही "नैचुरलमोशन" नामकी एक कंपनी बनायी क्योंकि उन्होंने यहीं पढ़ाई की है. दूसरा कारण वे देते हैं कि ऑक्सफोर्ड में उनकी ऐसे लोगों से जान-पहचान थी, जो कंपनी में निवेश कर सकते थे. जर्मनी में यह ज़रा मुश्किल होता. टोर्स्टन का मानना है कि इंगलैंड में एक काफ़ी अच्छा फि़ल्म और गेम उद्योग है.ग्राहक ठीक घर के सामने ही हैं.

टोर्स्टन राइल की कंपनी नैचुरल मोशन के कलाबाज़ स्टंट मैन इस बीच हॉलीवुड की "लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स " और "ट्रोया" जैसी फ़िल्मों में अपना कौशल दिखा चुके हैं. बात सिर्फ़ इतनी ही है कि "वर्चुअल स्टंट मैन" एक दिन "रीयल स्टंट मैन" का पत्ता साफ़ कर देगा.


रिपोर्ट- अने अल्मेलिंग / राम यादव

संपादन- आभा मोंढे