आंखें मूंद कर पढ़िए
८ जनवरी २००९4 जनवरी 1809 को पैदा हुए ब्रेल ने चार साल की उम्र में अपनी एक आंख खो दी. अपने पिता के वर्कशॉप में खेलते हुए लकड़ी की एक सींक उनकी आंख में घुस गयी. चोट पक जाने से पैदा हुआ संक्रमण उनकी दूसरी आंख में भी फैल गया और 10 साल की उम्र में उनकी दृष्टि पूरी तरह ख़त्म हो गयी. 19वी शताब्दी के फ़्रांस में नेत्रहीनों के लिए कोई जगह नहीं होती थी. ब्रेल को पेरिस के एक स्कूल में भेजा गया जहां नेत्रहीनों को टोकरी और चटाई जैसी चीज़ें बनाने की तालीम दी जाती थी.
वहीं किसी विषय पर भाषण देने आए एक सैनिक ने युद्ध में सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कोड का वर्णन किया. कोड की ख़ासियत यह थी, कि वह उभरे-उभरे बिंदुओं का बना होता, इसलिए उँगलियाँ फिराते हुए अंधेरे में भी पढ़ा जा सकता था. यह सुनकर ब्रेल का कौतुहल जागा और उन्होंने शीघ्र ही नेत्रहीनों के लिखने-पढ़ने के लिए एक वर्णमाला बना ली. ब्रेल ने एक ऐसी लिपि बनाई, जिसे छू कर पढ़ा जा सकता है.
6 उभरे हुए बिंदुओं के संयोजन से किसी भी भाषा के अलग-अलग अक्षर और अंक बनाए जा सकते हैं. ब्रेल ने इस लिपि का संगीत के लिए भी उपयोग किया. उन्होंने फिर रैपिग्राफी नामक एक और प्रणाली का विकास किया जिसके द्वारा नेत्रहीन और देखने में सक्षम, दोनो तरह के लोग, एक दूसरे से बातचीत कर सकते थे. उन्होंने इस काम के लिए एक ख़ास टाईपराइटर भी बनाया. लूई ब्रेल की मौत 43 साल की आयु में 1852 में टीबी यानि तपेदिक से हुई. फ़्रांस ने ब्रेल के योग दान को पहली बार 1952 में स्वीकार किया. उनकी अस्थियों को पैरिस के पैंथियन में दफ़नाया गया.
दीपेन्द्र मनोचा नेत्रहीनों के लिए नई तकनीकों से किताबें विकसित करने वाले डेसी कॉन्सॉर्टियम की दिल्ली शाखा के निदेशक हैं. वह बतातें हैं कि ब्रेल को किस तरह नई तकनीकों के द्वारा और बेहतर बनाया जा रहा है. आजकल इस लिपि को कंप्यूटर से भी जोड़ा जा सकता है. रिफ़्रेशबल ब्रेल डिस्प्ले नामक इस यंत्र को यदि कंप्यूटर से जोड़ा जाए तो कंप्यूटर पर हर बार स्क्रीन बदलने के साथ साथ ब्रेल डिस्प्ले भी बदलता है. इसके अलावा, डेसी कॉन्सॉर्टियम का मक़सद है, किताबें छापने का दुनिया भर में एक मानकीकृत तरीक़ा स्थापित करना जिससे कि विश्व में किसी भी भाषा में छपी किताब को आसानी से ब्रेल लिपि में भी छापा जा सके.
इस वर्ष, भारत ने भी लुई ब्रेल की दूसरी जन्मशताब्दी पर एक नया डाक टिकट और 2 रुपए का सिक्का जारी किया, जिसमें लूई ब्रेल का नाम ब्रेल लिपि में ही लिखा गया है. ब्रेल लिपि की क्षमता को लोगों ने शुरुआत में तो कम ही समझा, लेकिन आज करोड़ों नेत्रहीन इसी वजह से समाजिक जीवन में अपने आप को स्थापित कर पाएं हैं.