अब गणतंत्र दिवस परेड की झांकी पर आमने-सामने केंद्र व बंगाल
२ जनवरी २०२०भारत के गणतंत्र दिवस के मौके पर इस बार भी दिल्ली में होने वाली 26 जनवरी की परेड में पश्चिम बंगाल की झांकी को अनुमति नहीं मिली है. इस मुद्दे पर एक बार फिर केंद्र और राज्य सरकार का टकराव तेज हो रहा है. राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) और नागरिकता (संशोधन) विधेयक, सीएए के खिलाफ ममता बनर्जी की मुहिम की वजह से ही यह फैसला किया गया है.
सीएए के मुद्दे पर तृणमूल व बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हो गया है. तृणमूल ने जहां इस फैसले को बंगाल और इसकी जनता का अपमान करार दिया है वहीं बीजेपी का दावा है कि इस मामले में पार्टी या केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है. इससे पहले वर्ष 2015, 2017 और 2018 में भी बंगाल की झांकी को अनुमति नहीं मिली थी.
समिति करती है फैसला
गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाली झांकियों को एक लंबी व कड़ी चयन प्रक्रिया के जरिए चुना जाता है. इसके लिए लगभग छह महीने पहले ही इसमें रक्षा मंत्रालय की तरफ से राज्यों औऱ मंत्रालयों से प्रस्ताव मांगे जाते हैं. उसके बाद एक विशेषज्ञ समिति तमाम प्रस्तावों पर कई दौर की बैठकों में विचार करने के बाद फैसला करती है. उक्त समिति में कला, संस्कृति, पेंटिंग, मूर्ति कला, संगीत, आर्किटेक्चर और कोरियोग्राफी से जुड़ी मशहूर हस्तियां शामिल होती हैं. उसके बाद थीम, कॉन्सेप्ट, डिजाइन और विजुअल इम्पैक्ट के आधार पर झांकियों का चयन किया जाता है.
रक्षा मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि विशेषज्ञ समिति ने दो दौर की बैठकों के बाद ही पश्चिम बंगाल के प्रस्ताव को खारिज करते हुए उसे आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया. इस बार समिति को विभिन्न राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्रीय मंत्रालयों से कुल 56 प्रस्ताव मिले थे. उनमें से महज 22 को ही मंजूरी दी गई. उनमें से विभिन्न राज्यों के 16 प्रस्ताव हैं. पश्चिम बंगाल सरकार ने इस बार 'कन्याश्री' के अलावा 'जल धरो, जल भरो' और 'सबूज साथी' थीम पर प्रस्ताव भेजे थे. कन्याश्री योजना पर उसके प्रस्ताव को वर्ष 2017 में भी खारिज कर दिया गया था.
टकराव तेज होने के आसार
एनआरसी और सीएए के मुद्दे पर पश्चिम बंगाल सरकार औऱ केंद्र पहले से ही आमने-सामने हैं. अब ताजा फैसले से इस टकराव के और तेज होने का अंदेशा है. हालांकि रक्षा मंत्रालय की दलील है कि वर्ष 2019 में इसी प्रक्रिया के जरिए बंगाल की झांकी को परेड में शामिल होने के लिए चुना गया था. लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इस मामले में केंद्र सरकार पर बदले की भावना से काम करने का आरोप लगाया है उधर, बीजेपी ने बंगाल सरकार पर नियमों और प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं करने का आरोप लगाया है.
तृणमूल कांग्रेस सांसद सौगत राय कहते हैं, "बंगाल को गणतंत्र दिवस परेड से बाहर करना घोर अन्याय है. बंगाल एक समृद्ध विरासत का प्रतिनिधित्व करता है और इसका बहिष्कार मोदी-शाह की जोड़ी के पक्षपात का सबूत है. यह राज्य और यहां की जनता का अपमान है.”
बंगाल में संसदीय मामलों के मंत्री तापस राय आरोप लगाते हैं, "बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार राज्य के प्रति बदले की भावना से काम कर रही है. पश्चिम बंगाल नागरिकता (संशोधन) कानून और एनआरसी समेत केंद्र सरकार की तमाम जनविरोधी नीतियों का विरोध कर रहा है. इसी वजह से उसके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है.”
दूसरी ओर, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "राज्य सरकार ने प्रस्ताव पेश करने में नियमों और प्रक्रिया का पालन नहीं किया था. इसलिए उसे खारिज कर दिया गया. तृणमूल कांग्रेस को हर मुद्दे पर राजनीति करना बंद करना चाहिए. इस मामले में बीजेपी या केंद्र की कोई भूमिका नहीं है.”
लेकिन राजनीतिक हलके में झांकी के प्रस्ताव को खारिज किए जाने के लिए मूल रूप से केंद्र के साथ जारी विवाद को ही जिम्मेदार माना जा रहा है. एक राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "वैसे तो पहले भी बंगाल के प्रस्ताव खारिज होते रहे हैं. लेकिन केंद्र व राज्य सरकार के संबंधों की रोशनी में देखने पर यह मामला कुछ संदिग्ध तो लगता ही है. शायद केंद्र के कुछ फैसलों के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस और उसकी सरकार के रवैए की वजह से ही ऐसा हुआ हो.”
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